लंकापति रावण: असुरों का राजा

"लंकापति रावण: असुरों का राजा" रामायण महाकाव्य के एक प्रमुख चरित्र का परिचय है जो असुर सम्राट रावण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस अध्याय में, रावण की पौराणिक कहानी, उसका राजनीतिक और सामरिक जीवन, और उसकी अधर्मिक चरित्र की विशेषताएं उजागर होती हैं।

रावण लंका के राजा और असुरों के सम्राट थे, जो अत्यंत प्रवीण और बुद्धिमान थे। उन्होंने ब्रह्मा का वरदान प्राप्त किया था जिससे वह अमर हो गए थे। इसके बावजूद, उनकी अधर्मिकता, अपने ब्रह्मा वरदान का दुरुपयोग करना, और सीता का हरण करना ने उन्हें असुरों के राजा के रूप में नकारात्मक प्रतीत कर दिया।

"लंकापति रावण: असुरों का राजा" में, रावण की पौराणिक कहानी, उसका राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण, और उसके साथ हुए घटनाक्रमों का विवरण होता है। उसकी ब्रह्मा वरदान से प्राप्त अमरता के बावजूद, उसकी अधर्मिकता और स्वार्थपरता ने उसे अविवादित दुर्जय असुर का दर्जा दिलाया।

यह कथा पाठकों को धार्मिक और नैतिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उचित अध्ययन करने का अवसर प्रदान करती है, साथ ही रामायण में अधर्मिकता और न्याय की जीवंत उदाहरणों की भी दिशा में प्रेरित करती है।