"फातिहा: अल्लाह की महिमा और करुणा की प्रशंसा" - Omnath Dubey

अल-फातिहा (Al-Fatiha) कुरान की पहली सूरह है और इसे 'फातिहा' के नाम से भी जाना जाता है। यह सूरह इस्लामिक धर्म के विश्वासियों के लिए महत्वपूर्ण है और उनकी नमाज़ (सलात) का हिस्सा होती है। इस सूरह में अल्लाह की महिमा, शुक्रगुज़ारी, आलोचना, और मार्गदर्शन की बातें प्रकट होती हैं।

विस्तार से:

1. अल-हमदुलिल्लाह (Alhamdulillah): इस सूरह की शुरुआत 'अल्हम्दुलिल्लाह' के शब्दों से होती है, जिसका अर्थ होता है - "सब प्रशंसा अल्लाह की है"। यह शब्द अल्लाह की महिमा और प्रशंसा का व्यक्तिगत और सम्पूर्ण रूप से उद्घाटन करता है।

2. अर-रहमान अर-रहीम (Ar-Rahman Ar-Rahim): इसके बाद 'अर-रहमान' और 'अर-रहीम' आते हैं, जिनका अर्थ होता है - "करुणानिधि और दयालु"। यह दो गुण समग्र मानवता के लिए अल्लाह की दया और करुणा की प्रशंसा करते हैं।

3. मालिक यौमिद-दीन (Malik Yawmid-Din): इसके बाद 'मालिक यौमिद-दीन' आता है, जिसका अर्थ होता है - "दया के दिन का स्वामी"। यह उद्घाटन करता है कि आखिरी दिन मालिक यानी अल्लाह की अदालत होगी जहाँ सबका हिसाब-किताब होगा।

4. ईय्याक नाबुदु व ईय्याक नस्ताईन (Iyyaka Na'budu wa Iyyaka Nasta'in): इसके बाद आता है - "हम तुझे ही पूजते हैं और तेरी ही सहायता मांगते हैं"। यह अल्लाह के प्रति विश्वास का व्यक्तिगत और सम्पूर्ण रूप से उद्घाटन है।

5. इहदिनस-सिरातल-मुस्तकीम (Ihdinas-Sirat al-Mustaqim): फिर आता है - "हमें सीधे मार्ग पर पहुंचा"। यह अल्लाह से सीधे मार्ग पर चलने की प्रार्थना करता है।

6. सिरातल-लजीना अनअम्त अलैहिम गैरिल मग़दुबिय अलैहिम वलाद्दाल्लीन (Sirat al-Ladhina an'amta 'alaihim Ghairil-Maghdubi 'alaihim wa la-Dallin): अंत में सूरह अल-फातिहा कहती है - "जिन पर तू ने अपनी कृपा की, न वो जिन पर तुझ पर गुस्सा है, और न वो जिन पर गुमराही है"। यह आख़री भाग है जो मानवता को सीधे मार्ग पर चलने और गलतियों से बचने की प्रार्थना करता है।

इस प्रकार, अल-फातिहा सूरह कुरान के प्रारंभिक भाग में हमें अल्लाह की महिमा, उसकी करुणा और दया, आख़री दिन की दया, मानवता के समक्ष अल्लाह के प्रति विश्वास और उसके मार्ग पर चलने की प्रार्थना का संक्षिप्त और महत्वपूर्ण संकेत देती है।