भगवद गीता और ध्यान: चित्त को शांति की दिशा

भगवद गीता, जो धार्मिक और दार्शनिक शिक्षाओं का संग्रह है, इसमें ध्यान की महत्वपूर्णता पर विस्तृत चर्चा करती है। यह उपनिषदों के अद्भूत उपदेशों का संकलन है, जो चित्त को शांति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

1. ध्यान का महत्व:
भगवद गीता में ध्यान के महत्व का समर्थन है। गीता के अनुसार, ध्यान का अभ्यास चित्त को शांति और साकारता की प्राप्ति के लिए एक प्रमुख साधना है।

2. चित्त की निग्रह:
गीता में ध्यान का अभ्यास करके चित्त की निग्रह (नियंत्रण) करने का उपाय बताया गया है। यह चित्त को अशांत, अस्थिर स्थिति से बाहर लाकर उसे एकाग्रता में स्थापित करने की कला है।

3. ध्यान में समर्थ्य:
गीता में ध्यान की प्रक्रिया में समर्थ्य की बात की गई है। यह ध्यान की अभ्यास को सीखने में समय और साधना की आवश्यकता होती है, लेकिन यह एक शक्तिशाली साधना है जो चित्त को नियंत्रित कर सकती है।

4. ध्यान का लाभ:
गीता में ध्यान के लाभों का वर्णन है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है और चित्त को प्राकृतिक अस्तित्व से बाहर ले जाकर उसे आत्मा के साथ मिलाता है।

5. ध्यान में समर्पण:
ध्यान का अभ्यास गीता में समर्पण के साथ जुड़ा हुआ है। यह आत्मा के साथ समर्पित होने का माध्यम है, जिससे चित्त को आत्मा के अद्वितीयता में लीन करने में मदद होती है।

6. ध्यान और भक्ति:
गीता में ध्यान को भक्ति के साथ जोड़ने का प्रशिक्षण है। यह बताता है कि ध्यान भक्ति के एक पूरक है और इससे चित्त को परमात्मा की ओर दिशित करने में सहायक होता है।