निजीकरण क्या है ? इसे कैसे समझे आखिर सरकार निजीकरण के पक्ष में क्यों है ?

नमस्कार मैं हूँ ओमनाथ....

जैसा की आप ने ऊपर पढ़ा की हम आज किस विषय पर इस पोस्ट में चर्चा करने वाले है  ( निजीकरण )... आईये आज निजीकरण को साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करते है...

निजीकरण .. ये नाम कुछ ऐसा है जिसे सुनकर हर कोई सोच में पड़ जाता है, इस नाम को सुनकर हर किसी के मन में एक प्रश्न अवश्य उठता है, अगर सभी सरकारी दफ्तरो का निजीकरण हो गया तो क्या होगा ? है ना ये सोचने वाली बात ? क्या आप को ऐसा लगता है की सरकार सभी सरकारी दफ्तरो को धीरे धीरे निजीकरण को ओर लेकर जाती हुई दिख रही है ? अगर ऐसा लगता है तो आप सही पोस्ट पर पहुंच चुके है और आज हम इस पोस्ट में इन्ही प्रश्नो का हल जानने का प्रयास करेंगे जिससे ऐसे प्रश्न बार बार मन मे ना आये....

देखिये निजीकरण का सीधा तात्पर्य किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन का सरकार के द्वारा त्याग है क्योंकि सरकारी कंपनियाँ निजी क्षेत्रक की कंपनियों में दो प्रकार से परिवर्तित हो रही है पहला सरकार का सार्वजनिक कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से बाहर होना तो दूसरा है सार्वजनिक क्षेत्रक की कंपनियों को सीधा बेच देना अब आप को कुछ कुछ समझ में आ गया होगा की निजीकरण का मतलब क्या है और यह कितने भागो मे परिवर्तित है आईये और गहराई में जाकर समझने का प्रयास करते है निजीकरण को और बेहतरी से समझने के लिए हमें विनिवेश को समझना होगा तो पहले हम विनिवेश क्या है ? आईये जानते है...  किसी सार्वजनिक क्षेत्रक के उधमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को विनिवेश कहा जाता है !! देखिये सरकार के अनुसार देखे तो इस प्रकार की बिक्री का मुख्य लक्ष्य सिर्फ वित्तीय अनुशासन को बढ़ाना और आधुनिकीकरण मे सहायता देना है साथ ही साथ यह भी अपेक्षा की जाती है की निजी पूँजी और प्रबंधन क्षमताओं का उपयोग इन सार्वजनिक उधमों के निष्पादन को सुधारने में प्रभावात्मक सिद्ध होगा लेकिन क्या ऐसा हुआ यह विचारणीय है... सरकार का निजीकरण की तरफ भागना यह संकेत है की सरकार चाहती है की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्वाह को बढ़ावा मिले... इतना ही नहीं सरकार ने तो सार्वजनिक उपक्रमों को प्रबंधन निर्णयों मे स्वायत्ता प्रदान कर उनकी कार्यकुशलता को भी बेहतर करने का प्रयास किया है !!