भारतीय वास्तुकला के महत्वपूर्ण बिंदु जिसे जानना बेहद जरूरी है



नमस्कार मैं हूं ओमनाथ और आज के इस पोस्ट में जानेंगे भारतीय वास्तुकला के बारे में जिसे जानना हर छात्र के साथ-साथ भारतीय मूल के हर निवासियों के लिए बेहद जरूरी है, वास्तु कला जिसे आर्किटेक्चर शब्द से भी जाना जाता है जो कि लैटिन शब्द टेक्शन से उत्पन्न है, जिसका सीधा साधा अर्थ बिल्डर या निर्माता होता है अगर हम और भी साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें तो हम कहेंगे कि जब आदिकालीन वासियों के द्वारा अपने रहने उठने बैठने और खाने-पीने हेतु आश्रय का जो निर्माण किया गया था वास्तव में वास्तुकला विज्ञान का प्रादुर्भाव भी वहीं से हुआ था, वास्तुकला और भारतीय कला की कहानी विकास की ही कहानी है अगर हम कुछ वर्ष पीछे जाकर वास्तुकला की बात करें तो प्राचीन काल से ब्रिटिश तक वास्तुकला की अपनी स्वयं की एक कहानी रही है जिसके अंतर्गत कई महान साम्राज्य के उद्भव के साथ-साथ पतन तो कहीं विदेशी शासकों का आक्रमण भी परिलक्षित है !!

भारतीय वास्तुकला का वर्गीकरण कुल 3 भागों में किया गया है, पहला - प्राचीन भारत, दूसरा - मध्यकालीन भारत, तीसरा - आधुनिक भारत 

प्राचीन भारत के अंतर्गत हड़प्पाई कला, मौर्यकालीन कला, मौर्योत्तर कला, गुप्तकालीन कला, दक्षिण भारतीय कला का वर्णन किया गया है !!

मध्यकालीन भारत के अंतर्गत दिल्ली सल्तनत और मुगल काल का वर्णन किया गया है !!

आधुनिक भारत के अंतर्गत इंडोगठित शैली, एवं नव रोमन शैली का वर्णन किया गया है !!