अपनी अवकात देख तुम्हारी अवकात और उसकी अवकात कहा से पहले सोच ले


प्रिय पाठक 

आप के लिए आज एक सच्ची घटना पर आधारित लेख लेकर आया हूँ, हम आशा करते है मेरे साथ घटित इस घटना को मै पूरी वेदना के साथ आप के बीच पूर्ण रूप से प्रस्तुत कर सकूंगा, कहने में तो बहुत छोटी सी बात होती है अवकात लेकिन दर्द बहुत देती है ज़ब कोई बिना कुछ सोचें समझे यह कह देता है की तुम्हारी अवकात क्या है ? बात कुछ इस तरह है की ज़ब मै इलाहाबाद शुरू में गया तो मेरे कुछ दोस्त वहाँ मुझसे मिले ज़ब मै अपने दोस्तों से मिला तो थोड़ा दिल को सुकून मिला की कम से कम कोई तो है यहां अपने जान पहचान का थोड़ा मन को आराम हुआ की अब हमें अगर कोई दिक्क़त होंगी तो दोस्त साथ है अब हमें डरने की जरूरत नहीं है,लेकिन कुछ दोस्त से अपनी अवकात मैं  तभी जान चुका था, उसके बाद से ये शब्द सुनने के बाद कुछ ज्यादा ही अजीब लगने लगा था, इसी तरह धीरे धीरे मै इलाहाबाद मे अच्छी तरह से अपनी पूरी व्यवस्था कर लिया घर से दोनों भाई का सहयोग हमेशा से हमें मिलता रहा है और मै उन्ही दोनों भाईयों के वजह से आज इलाहाबाद मे आया भी हूँ, बात कुछ इस तरह शुरू हुई, ज़ब मै इलाहाबाद मे तीन वर्ष व्यतीत कर लिया फिर मै कुछ दिनों के लिए ज़ब मै घर आया तो मेरे घर आने के बाद कुछ लोगो ने कई बार एक शब्द का प्रयोग किया अपनी अवकात देख आप को भी पता होगा ज़ब कोई बात करे अवकात की तो दिल हर किसी का सहम जाता है अब इस लेख को ज्यादा बड़ा ना करते हुए अब बात करते है 14 अगस्त वर्ष 2022 की ज़ब हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव की तैयारी कर रहा था 14 अगस्त की रात्रि कुछ ऐसी रही की ज़ब किसी अपने ने एक शब्द अवकात का प्रयोग फिर एक बार किया आज तक किसी ने कुछ भी कहा हो लेकिन किसी का जवाव देना मुझे अच्छा नहीं लगता और उस रात मैंने जवाब भी नहीं दिया ऐसा नजरअंदाज की मानो मैंने कुछ सुना ही ना हो लेकिन कुछ देर बाद ज़ब मै सोने गया तो उस रात पता नहीं क्यों यह शब्द बार बार परेशान करने लगा एक मन एक ही प्रश्न बार बार करता लोग हमें ही ऐसा क्यों बोलते है की तुम्हारी अवकात क्या है, क्या मै इतना गरीब हु की हर कोई हमें ऐसा बोल कर चला जाता है, और मै कुछ कह नहीं पता लेकिन धीरे धीरे बहुत सोचने और समझने के बाद इस बात से संतुष्टी हुई की मेरे पिता के द्वारा सिर्फ हमें अच्छी परवरिश अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा दी गई अच्छी संस्कार दिए गए है हमारे पिता ने हमारे लिए पैसे बचाकर तो नहीं रखे लेकिन कभी खाने के लिए मोहताज नहीं होने दिए लेकिन ज़ब वो बुजुर्ग हो गए तो उन्ही की शिक्षा संस्कार और तजुर्बे के ऊपर आज उनके दोनों बच्चों ने समाज में उनका नाम सदैव ऊपर करने का प्रयास किया वह भी अपने कदम पर मेहनत करने पर ना की पिता जी द्वारा कमाए गए पैसे पर इतना, सब सोचने के बाद ऐसा लगा की जो व्यक्ति अपने पिता की कमाई पर आगे बढ़ते है उन्हें हर किसी की अवकात को उनको दिखाने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ रास्ता अपना लेते है, लेकिन जो अपने कदम पर मेहनत करके समाज में अपना खुद का अस्तित्व बनाते है वो कभी किसी की अवकात देखने की बात नहीं करते है, इतना सब कुछ सोचते सोचते सुबह के 3 बज गए लेकिन उसके बाद बहुत अच्छी नींद आई और फिर दिल और मन ने फैसला लिया की आज के बाद अब हम पैसो वालों से सदैव दूर रहेंगे उनके नजदीक जाने का प्रयास तब करेंगे ज़ब हम अपने कदम पर उनसे बड़ी उचाई पर होंगे हमारा लिया गया यह फैसला सही है या गलत ये आप को बताना है......


धन्यवाद 


लेखक(सच्ची घटना पर आधारित)

ओमनाथ दूबे

छात्र- संघ लोक सेवा आयोग 

पता- शुक्ला मार्केट सलोरी प्रयागराज 211004

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