विवाह कैसे करें परिवार की पसंद से या अपनी पसंद है जाने विवाह करने से पहले कुछ जरूरी चीजे


जैसे श्रीदेवी दुर्गा जी ने अपने तीनों पुत्रों श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी का विवाह किया था इसी क्रम के लेख में आगे बढ़ेंगे मेरे लेखक के अनुयायी ऐसे ही करते हैं, 17 मिनट की असुर निकंदन रमैणी है, फेरों के स्थान पर उसको बोला जाता है जो करोड़ों गायत्री मंत्र से उत्तम तथा लाभदायक है, जिसमें विश्व के सर्व देवी देव तथा पूर्ण परमात्मा का आह्वान तथा स्तुति प्रार्थना है, जिस कारण से सर्व शक्तियां उस विवाह वाले जोड़े की सदा रक्षा तथा सहायता करते हैं इससे बेटी बची रहेगी जीने की सुगम राह हो जाएगी !!
विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग :- 
विवाह में व्यर्थ का खर्चा त्यागना पड़ेगा, जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना दहेज देना यह व्यक्ति परंपरा है, जिस कारण से बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है, और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू हो गया है, जो माता पिता के लिए महापाप का कारण बनता है, बेटी देवी का स्वरूप है हमारी को परंपराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया है, श्री देवी पुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्मांड के प्रारंभ में तीनों देवताओं श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया उस समय न कोई बाराती था न कोई भांति था, न कोई भोजन भंडारा किया गया था ना डीजे बजा था ना कोई नृत्य किया गया था श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा जी से कहा है कि हे ब्रह्मा यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ, इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिवजी को पार्वती जी को देकर कहा कि यह तुम्हारी पत्नियां हैं इनको ले जाओ और अपना अपना घर बसाओ तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोग में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ !!

शंका समाधान :-
कुछ व्यक्ति कहते हैं कि पार्वती जी की मृत्यु हो गई थी उस देवी का पुनर्जन्म राजा दक्ष के घर हुआ था युवा होने पर देवी सती यानी कि पार्वती जी ने बनारस के बताने के पश्चात श्री शिवजी को पति बनाने का दृढ़ संकल्प कर लिया और अपनी माता जी के माध्यम से अपनी इच्छा पिता दक्ष को बताई जो राजा दक्ष ने कहा कि वह शिवजी मेरा दामाद बनने योग्य नहीं है क्योंकि वह हिमनद में रहता है केवल एक ही ख्याल पर्दे पर बदल बादशाह है शरीर पर राख लगाकर भांग के नशे में रहता है सरसों के साथ रखता है इसलिए मैं अपनी बेटी का विवाह करके जगत में हंसी का पात्र नहीं बनूंगा परंतु देवी पार्वती भी जिद की पक्की थी उसने अपनी इच्छा श्री शिवजी के पास भिजवा दी और कहा कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं राजा दक्ष ने पार्वती जी का विवाह किसी अन्य के साथ निश्चित कर रखा था उसी दिन श्री शिवजी ने अपने साथ हजारों की संख्या में भूत प्रेत भैरव तथा अपने गणों को लेकर विवाह मंडप पर पहुंच गए राजा दक्ष के सैनिकों ने विरोध किया शिव की सेना और दक्ष की सेना में युद्ध हुआ पार्वती ने शिवजी को वरमाला पहना दी पार्वती को बलपूर्वक लेकर श्री शिव जी कैलाश पर्वत पर अपने घर ले गए कुछ व्यक्ति कहते हैं कि देखो श्री शिवजी भी भव्य बारात लेकर पार्वती से विवाह करने आए थे इसलिए बारात की परंपरा पुरातन है इसलिए बारात बिना विवाह की शोभा नहीं होती है इसका उत्तर यह है कि यह विवाह नहीं था यह तो प्रेम प्रसंग था श्री शिवजी बारात नहीं सेना लाए थे पार्वती को बलपूर्वक उठाकर ले जाने के लिए विवाह की पुरातन परंपरा श्री देवी महापुराण के तीसरे स्थान में है और ऊपर बता दी है बेटियों तथा बेटों को चाहिए कि वह अपने माता-पिता की इच्छा अनुसार विवाह करें प्रेम विवाह महा प्लेस का कारण बन सकता है जैसे भगवान शिव जी और पार्वती जी का किसी बात पर मनमुटाव हो गया शिवजी ने पार्वती जी से पत्नी व्यवहार बंद कर दिया तथा बोलचाल भी बंद कर दिया था पार्वती ने सोचा कि अब यह घर मेरे लिए नरक हो गया है इसलिए कुछ नहीं अपनी मां के पास चली जाती हूं पार्वती जी अपने पिता दक्ष के घर मायके में चली गई उस दिन राजा दक्ष ने एक हवन यज्ञ का आयोजन किया हुआ था राजा दक्ष ने अपनी बेटी का सत्कार नहीं किया तथा कहा कि आज क्या लेने आई हो देख लिया उसका प्रेम चली जा घर से पार्वती जी ने अपने माता-पिता से श्री शिवजी के नाराज होने की कथा बता दी थी माता ने अपने पति दक्ष को सब बताया था पार्वती जी को अपना मायके में अस्थान थाना ससुराल में प्रेम विवाह नहीं ऐसी गंभीर परिस्थिति उत्पन्न कर दीजिए दक्ष पुत्री को आत्महत्या के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं देखा और राजा दक्ष के विशाल हवन कुंड में जलकर मर गई धार्मिक अनुष्ठान का नाश किया अपना अनमोल मानव जीवन को या पिता का नाश कर आया क्योंकि जब श्री शिवजी को पता चला तो वे अपनी सेना लेकर पहुंचे और अपने ससुर दक्षिण फुल गर्दन काट दी बाद में बकरे की गर्दन लगाकर जीवित किया उसे प्रेम विवाह ने कैसा घमासान मचाया शिवसेना को बारात तथा कर कुप्रथा को जन्म दिया गया है और यह प्रसंग प्रेम विवाह रूपी कुप्रथा का जनक है जो समाज के नाश का कारण है !!

विवाह जो शिवप्रसाद से हुआ वह आज तक सुखी जीवन जी रहे हैं जैसे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी

विवाह करने का उद्देश्य :- 
विवाह का उद्देश्य केवल संतानोत्पत्ति करना है फिर पति पत्नी मिलकर परिश्रम करके बच्चों का पालन करते हैं उसका विवाह कर देते हैं फिर वे अपना घर बस आते हैं इसके अतिरिक्त प्रेम विवाह समाज में अशांति का बीज बोना है समाज बिगाड़ की चिंगारी है !!

लेखक
दासन दास रामपाल दास 
पुत्र/शिष्य स्वामी रामदेवानंद जी 
सतलोक आश्रम बरवाला 
जिला- हिसार, हरियाणा (भारत)
प्रसिद्ध पुस्तक का नाम (जीने के राह)
क्रम संख्या -9
पृष्ठ संख्या - 26