जातिवाद और मतभेद दो ऐसे प्राचीन मुद्दे हैं जो समाज में असमानता के परिप्रेक्ष्य में राजनीति की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये मुद्दे समाज में विभाजन, असमानता और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आधारित होते हैं, और उन्हें समाज के सभी पहलुओं पर प्रभाव डालते हैं। जातिवाद एक समाज में जातियों के आधार पर असमानता बढ़ाता है और लोगों को उनकी जाति के आधार पर विभाजित करता है। यह समाज में सामाजिक वर्गों की उत्पत्ति करता है जिसका परिणाम समाज में विभाजन और असमानता होता है। जातिवाद से जुड़े मतभेद सामाजिक और राजनीतिक दलों के बीच उत्तराधिकारी और अपूर्ण विवादों का कारण बनते हैं, जो समाज की एकता और सामरस्य को हानि पहुँचाते हैं। मतभेद भी समाज में असमानता की दिशा में प्रभाव डालते हैं, लेकिन यह धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक विचारों पर आधारित होते हैं। राजनीतिक मतभेद समाज में विचारों के आधार पर विभाजन का कारण बनते हैं, और ये दलों के बीच संघर्ष और असहमति को बढ़ाते हैं। मतभेदों के परिणामस्वरूप समाज में विचारों के विभिन्न स्तरों पर उत्पादित होने वाले विवाद और तनाव देखने को मिलते हैं, जो समाज की सुख-शांति को प्रभावित करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, राजनीति की भूमिका होती है कि वह जातिवाद और मतभेद से उत्पन्न होने वाले विवादों का समाधान कैसे कर सकती है और समाज में असमानता को कैसे कम कर सकती है। राजनीतिक नेताओं को चाहिए कि वे समाज में भाईचारे और सामरस्य की भावना को बढ़ावा देने के लिए एकत्रित हों और जातिवाद और मतभेद के खिलाफ संघर्ष में उनका सहयोग करें। इस प्रकार, जातिवाद और मतभेद के परिप्रेक्ष्य में राजनीति की भूमिका होती है कि वह समाज में असमानता को कम करने और सामाजिक समरसता की दिशा में कैसे काम कर सकती है।
-- ओमनाथ
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