उपराष्ट्रपति : न्यायाधीशों की गरिमा और न्यायपालिका का सम्मान अपरिहार्य


उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर प्रकाश डाला कि ढांचागत तौर पर मजबूत, निष्पक्ष एवं स्वतंत्र न्याय व्यवस्था लोकतांत्रिक मूल्यों के फलने-फूलने और उसमें निखार लाने के लिए सबसे सुरक्षित गारंटी है।

श्री धनखड़ के सम्मान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आज नई दिल्ली में आयोजित एक सम्मान समारोह के दौरान सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने संस्कृत के एक श्लोक 'धर्मो रक्षति र​क्षित:' का हवाला दिया (कानून तभी हमारी रक्षा करता है जब हम उसकी पवित्रता को बरकरार रखते हैं) और इसे लोकतंत्र एवं कानून के शासन के 'अमृत वचन' करार दिया। यह देखते हुए कि मौजूदा दौर में यह धारणा बन गई है कि यह महत्वपूर्ण सिद्धांत दबाव में है, उन्होंने अधिकारियों और उच्च पदों पर बैठे लोगों को जनहित में कानून को सर्वोपरि रखने और लोकतांत्रिक परिवेश को बेहतर करने के लिए कहा। थॉमस फुलर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, 'चाहे आप कितने भी ऊंचे हो जाओ, कानून हमेशा आपसे ऊपर है।'

श्री धनखड़ ने इस अवसर पर जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों की गरिमा और न्यायपालिका के प्रति सम्मान अपरिहार्य है क्योंकि ये कानून के शासन और संवैधानिकता की बुनियाद हैं। उन्होंने देश में संवैधानिक संस्थाओं में सद्भाव और कामकाज में एकजुटता की भावना लाने का भी आह्वान किया।

श्री धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस अवसर पर उन्हें अदालत में अपनी पहली उप​स्थिति के दौरान हुई घबराहट की याद आती है। उन्होंने उन न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने शुरुआती दिनों में उन्हें प्रोत्साहित किया था।

इस सम्मान समारोह में केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री श्री किरेन रिजिजू, भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विकास सिंह, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारी एवं सदस्य शामिल हुए। 

भाषण का पूरा पाठ निम्नलि​खित है –

 

"अदालत में अपनी पहली उपस्थिति के दौरान हुई घबराहट की याद आती है।

पिछले वक्ताओं के संबोधन में परिलक्षित गर्मजोशी और सम्मान से विनम्र अ​भिभूत हूं। इससे अ​धिक सम्मान और क्या हो सकता है।

मैं उन लोगों द्वारा दिए गए सम्मान के इस पल को हमेशा संजो कर रखूंगा जो मुझे जानते हैं और जो मुझे दूसरों से अ​धिक जानते हैं।

लोगों की जीवन यात्रा में इस तरह के क्षण दुर्लभ होते हैं। इससे अधिक संतोषजनक, स्फूर्तिदायक और प्रेरक कुछ नहीं हो सकता।

वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में इसी अदालत के पवित्र परिसर में बिताए गए तीन दशकों से अधिक का समय काफी आनंददायक था। आज मैं जो कुछ भी हूं वह इसी के बदौलत हूं।

यहां हमें न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, अधिवक्ताओं एवं विनम्र अदालत और साथी कर्मचारियों सहित तमाम लोगों से सीखने का अवसर मिला।

मैं राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रै​क्टिस के दौरान बार के सदस्यों द्वारा सिखाई गई प्रभावशाली नैतिकता एवं पेशेवर कुशलता को कृतज्ञता से याद करना चाहूंगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी, न्यायमूर्ति टिबरेवाल और न्यायमूर्ति विनोद शंकर दवे ने मेरे व्य​क्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं उनका सदैव ऋणी रहूंगा। यहां तक कि उस समय बार के युवा सदस्यों ने भी स्वस्थ अदालती परिवेश और पेशेवर ​शिष्टाचार का उदाहरण पेश किया है। उनमें से दो न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी यहां मौजूद हैं। मैं उनसे जितना हो सकता था उससे कहीं अधिक मिला।

हमें अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जोसेफ स्टोरी की बातों को याद रखने की जरूरत है जिन्होंने 1829 में कहा था:

'कानून एक ईर्ष्यालु मालकिन है और उसे लंबे एवं निरंतर प्रेम भाव की आवश्यकता होती है। इसे महज एहसानों से नहीं बल्कि उदार निष्ठा से जीतना है।'

मैं पूरी गंभीरता से इस ईर्ष्यालु मालकिन को शांत करने में लगा हुआ था। दूसरे शब्दों में- 30 जुलाई 2019 को राज्यपाल के रूप में पद की शपथ लेने के बाद मुझे उस 'ईर्ष्यालु मालकिन' की अनुपस्थिति महसूस हुई।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में तीन साल के दौरान मुझे वाक्-पटुता, हास्य, अदालत कभी कभार होने वाली नोक-झोंक और दोस्तों के कटाक्ष की याद आई। मैं बेंच और बार से समझ और ज्ञान हासिल करने के लिए प्राप्त असाधारण अवसर के लिए हमेशा ऋणी रहूंगा, जिसका मैंने इन वर्षों के दौरान लाभ उठाया लेकिन पिछले तीन वर्षों से महरूम रहा।

हमारे शास्त्र में कहा गया है 'धर्मो रक्षति रक्षितः' यानी कानून तभी हमारी रक्षा करता है जब हम उसकी पवित्रता को बरकरार रखते हैं। यह लोकतंत्र और कानून के राज का 'अमृत वचन' है। मौजूदा दौर में व्यापक और प्रचलित धारणा बन गई है कि यह महत्वपूर्ण सिद्धांत दबाव में है।

देश में सभी लोगों को यह महसूस करने की जरूरत है कि थॉमस फुलर ने तीन शताब्दी पहले किस ओर इशारा किया था और कई मौकों पर इस न्यायालय ने द्वारा भी जोर दिया था:

'चाहे आप कितने भी ऊंचे हो जाओ, कानून हमेशा आपसे ऊपर है।'

अ​धिकारियों और उच्च पदों पर बैठे लोगों को व्यापक जनहित में इसका संज्ञान लेने और लोकतांत्रिक परिवेश को बेहतर करने की आवश्यकता है।

ढांचागत तौर पर मजबूत, निष्पक्ष एवं स्वतंत्र न्याय व्यवस्था लोकतांत्रिक मूल्यों के फलने-फूलने और उसमें निखार लाने के लिए सबसे सुरक्षित गारंटी है।

न्यायाधीशों की गरिमा एवं न्यायपालिका का सम्मान अपरिहार्य है क्योंकि ये कानून के शासन और संवैधानिकता की बुनियाद हैं।

हाल में सार्वजनिक तौर पर न्यायाधीशों पर व्य​क्तिगत निशाना साधने की गतल प्रवृ​त्ति का उदय दुर्भाग्यपूर्ण है और इसकी अनुकरणीय रोकथाम की आवश्यकता है।

बार और बेंच के एक सैनिक के तौर पर मैं संवैधानिक संस्थाओं में सद्भाव और कामकाज में एकजुटता की भावना लाने का प्रयास करूंगा।

भारत में संवैधानिक अध्यादेश की मूल भावना को देखते हुए सभी संस्थानों को अपने प्रतिनिधियों के जरिये परिलक्षित लोगों की आकांक्षाओं को प्रमुखता से समझने और महसूस करने की आवश्यकता है।

मैं आगे भी बार और बेंच के साथ लगातार बेहतर लगाव की उम्मीद करता हूं।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और माननीय मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की इस सहृदयता एवं विचारशीलता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।

धन्यवाद।"